रात सुहानी – RAAT SUHAANI


रात सुहानी ढलते ढलते सबकुछ देके जाती है
बदनामीसे डरनेवालो रोज सुबह फिर आती है
जितना पाया देकर जावो पुरखोने ये रीत सिखायी
बरस बरसकर बरखा रानी यही हमेशा गाती है
अंदर बाहर साफ साफ दिल मुझमे रहने आया है
दीपकमे है कुआ तेलका कभी न बुझती वाती है
शरद चांदनी शुभ्र कमलिनी मीराका मन चंचल चितवन
मधुरा भक्ती मधुर छलकती सांसोंको महकाती है
काले बादल कशा बिजलीकी भयभित कंपित क्षुद्र कीट जन
नवरात्री हस्तीकी बारिश बौछारे नहलाती है


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