(ग़ज़ल)
मजाक में या कुछ मतलब से मनकी बाते कहदी मैंने
बुरा नहीं था मतलब सचमे मेरे मनकी सुनली मैंने
कानाफूसी करके फैली बातबात पनघटपर उडकर
बातका काटा चुभ गया दिलको क्योंकी सुनली दिलकी मैंने
झूठ बातभी इतनी सुन्दर हो सकती है पता नहीं था
झुठसे झूठा पंगा लेकर सचकी झोली भरदी मैंने
नाम आज मैं लिखू किसलिए हवासे फैला है भ्रमरोतक
कड़वी सच्ची प्रेमकहानी भ्रमरोंकीभी पढली मैंने
मेरे कर्मोका फल मुझको वक्तवक्तपर मिला “सुनेत्रा”
चढ़ाबढ़ाकर या नहलाकर फलकी बाते लिखदी मैंने