काव काव काव रे – KAAV KAAV KAAV RE


This poem is not only a kid’s poem but also a grown up’s poem beacause the poem describes behaviour of some birds and animals in critical condition.

काव काव काव रे
नको खाऊ भाव रे

मडके भरले पाण्याने
पोते भरले दाण्याने

आता खरे बोल रे
कोल्हेकुई कोल रे
चिमणीला दे मोल रे
कर्तव्याला तोल रे

बांध घरटे काड्यांचे
गाव बनव वाड्यांचे
घोडे आणिक पाड्यांचे

येईल पाऊस धो धो धो
हसेल घरटे खो खो खो

जमेल पाणी हौदात
पोहशील मग डौलात


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