गोठुन पाणी हिमनग बनतो।
तापुन उकळुन तो ढग बनतो।।
वाऱ्यासंगे मेघ विहरतो।
जणू नभातिल तो खग बनतो।।
धवल व्हावया जलद धावतो।
नक्षत्रातिल तो धग बनतो।।
शुभ्र मेघना वायू वरतो।
शीतल अवखळ तो मग बनतो।।
वस्त्र विजेचे घन पांघरतो।
तडतड वर्षत तो टग बनतो।।
मात्रावृत्त (८+८ =१६ मात्रा)