क्या बात – KYA BAAT


वाहवा क्या बात ही
जणु दुधारी पात ही

मातृधर्मा  जागते
नागिणीची जात ही

लखलखे जणु आत्मजा
टाकुनी बघ कात ही

ही न मिथ्या देवता
समय समई वात ही

मी “सुनेत्रा” टपटपे
गझल लिहिते गात ही

 


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